जिनका भरोसा अपने गांव घर से उठ चुका था
जो अपने मोहल्लों से अपना रिश्ता छोड़ चुके हैं
वे अब दिल्ली कि गलियों में
भरोसे और मोहल्ले कि बात कर रहे हें
उनकी चिंताओं में आज पूरी दुनिया है
जो अपनी दुनिया से दूध-हरामी करके
पानी से ज्यादा पैसा शराब के लिए कमा रहे हें
ऊपर से यह घोषणा भी कि
हमने ही शेषनाग की तरह अपने माथे पर
उठा रखी है यह धरती
Wednesday 24 October, 2007
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