Wednesday 24 October, 2007

मोहल्ले दिल्ली में

जिनका भरोसा अपने गांव घर से उठ चुका था
जो अपने मोहल्लों से अपना रिश्ता छोड़ चुके हैं
वे अब दिल्ली कि गलियों में
भरोसे और मोहल्ले कि बात कर रहे हें

उनकी चिंताओं में आज पूरी दुनिया है
जो अपनी दुनिया से दूध-हरामी करके
पानी से ज्यादा पैसा शराब के लिए कमा रहे हें

ऊपर से यह घोषणा भी कि
हमने ही शेषनाग की तरह अपने माथे पर
उठा रखी है यह धरती